आरजू जो भी थी अब राख बन के रह गयी
हम रहे हर उसी पल के इंतज़ार में,
जिसे किस्मत कहीं दफ़न करके रह गयी
जिंदगी हर पल इक ख्वाब बनके रह गयी
हम भटकते रहे आसुओं के समुंदर में,
मेरी तन्हाई मुझे उसमें डूबा के रह गयी
जिंदगी हर पल इक ख्वाब बनके रह गयी
हम तेरे साथ चले तेरी हर हर राहों में,
तेरी रुस्वैया मुझे अंधेरो में लेके रह गयी
जिंदगी हर पल इक ख्वाब बनके रह गयी
अब तो हर रात गुज़रे धुए की प्नाहू में,
रौशनी में भी मैं अब डर के रह गयी
जिंदगी हर पल इक ख्वाब बनके रह गयी