May 31, 2011

Ek Pal

एक पल...कहाँ से लाऊं, 
की वोह पल तुम्हारे संग जी सकूं...
एक पल कहाँ से लाऊँ, 
छु सकूँ और महसूस कर सकूँ तुम्हे...

कितने पल भीत गए  वोह पल ढूँढने में,
चिरागों में, अंधेरों में, 
वोह पल कहाँ से लाऊं,
मेरी रौशनी के अंधेरों को हटा सके...

बैठती रही, सोंचती रही, 
कभी कभी तो रोती भी रही, 
बात करूँ  तो क्या करू, किस्से कहूँ,
कि वोह पल माँगा दो, दूंढ दो, दिला दो...

बारिश कि बूंदों में आंसुओं को छुपाती रही, 
अब तो बारिश भी नहीं होती है,
रात के सन्नाटे में ख़ामोशी सुनती रही, 
अब तो नींद भी नहीं आती है, 
वोह पल कहाँ से लाऊं,
जो बदल कि खनक में हरियाली कि चनक भरे, 
मेरी जिंदगी को एक जिंदगी का नाम दे...