Jan 28, 2019

काश

काश तुम कहते कि मेरे सख़्त हाथों में अब भी तुम्हारी ख़ुशबू है,
तो मैं कुछ पल और रूकती।
काश कि काश तुम कहते मैं रूठा हूँ, छूटा नहीं,
तो मैं कुछ पल और रूकती।
बंद दरवाज़ों में बेचैनी सी थी, साँसो में हवा कुछ कम सी थी,
अब खिड़कियाँ खोल के निकलना पड़ा,
काश तुम कहते कि इंतज़ार करना, कुछ अँधेरा होगा, पर डर ना करना,
दरवाज़ा मैं ही खोलूँगा,
तो मैं कुछ पल और रूकती।
काश कि काश तेरे रूह की आवाज़ मैं सुन पाती,
पर नब्ज़ ज़रा फीकी सी है आज, अमुमन खुदा नहीं बनना,
काश तुम उस दभी सी धड़कन को सुन पाते,
तो मैं कुछ और पल रुकती ।


—-इशा——

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