Sep 26, 2012

Dil se


अब रुखसत का वक़्त है
एहसास-ए-बहर छोड़े जा रही हूँ।
वो खारा तो नहीं कुछ जायदा मीठा है,
कहीं तुजे प्यास न लग जाए। 

Sep 23, 2012

फरीब-इ-नज़र अच्छा है

तेरे कपड़ों को अभी भी हंगेर में टंगा रखा है,
तेरे होने का एहसास बराह-इ- रास्त देता है। 

आज कल मैं भी ठंडी चाय की चुस्कियां लेती हु,
तेरा मुझसे होने का ख्याल फरीब-इ-नज़र अच्छा   है। 

आज भी टेबल पे दो प्लेट लगती है,
तेरी उँगलियों की थपथपी पूरे घर में गूंजती है,
अब रात की काफ्फी और टीवी पे क्रिकेट मैच,
तुझे मेरी रूह में बक़ुइद  हयात रखता है।