आज एक अजनबी से मुलाक़ात हुई,
गुफ़्तगू यूँ शुरू हुई जो कहानियों की डोर में बंद गयी।
ना नाम पूछा, ना काम,
फिर भी ज़िन्दगी की कुछ अनकही पर्तें खुल गयी।
कभी रोए नहीं अपनों के सामने, कि लगे ना दिल कमज़ोर सा है,
पर यहाँ हर दरार में आहट सी हो गयी।
यह अच्छा तरीक़ा था रूहों को पढ़ने का,
जब बात शायरी में हो गयी।
——इशा——
गुफ़्तगू यूँ शुरू हुई जो कहानियों की डोर में बंद गयी।
ना नाम पूछा, ना काम,
फिर भी ज़िन्दगी की कुछ अनकही पर्तें खुल गयी।
कभी रोए नहीं अपनों के सामने, कि लगे ना दिल कमज़ोर सा है,
पर यहाँ हर दरार में आहट सी हो गयी।
यह अच्छा तरीक़ा था रूहों को पढ़ने का,
जब बात शायरी में हो गयी।
——इशा——