Jun 23, 2012

आज ऐसा निकला कि हर दीवार गीला कर दिया।

अपनी ही एहसासात ने आज कमज़ोर कर दिया,
चाहकर भी दिल बे-मजबूर कर दिया।
आंसुओं को हम बहाने से कतराया करते थे,
आज ऐसा निकला कि  हर दीवार गीला कर दिया।

कह गए है हम रात के सन्नाटों से,
आज चादर फिर बिछा दो काली सिसकती बाहों से।
खामोशियों ने फिर कानों में तूफ़ान मचा दिया,
आज ऐसा निकला कि हर दीवार गीला कर दिया।

तुमसे ही

पलकों पे सपनो की शबनम पड़ी हुई है,

क्या करूँ बंद होते ही आंसू बन बह जाती है.
 
रात का इंतज़ार नहीं, दिल डरने लगता है,

नींद का आगाज़ नहीं, 'मैं' तनहा रह जाती है।