इस पेड़ की हर शाख़ से गिरता पत्ता
कहता है मैं तेरा कभी था ही नहीं।
जो रंग उड़ा उस पेड़ का,
जैसे कभी पानी मिला ही नहीं।
अब कौनसी हवा में खनक बजेगी,
कौन सा घोंसला बनेगा अभी।
अब घबराया वोह पेड़
टहनियों में ख़ुद को छुपाने की कोशिश करता है,
तेज़ झोंका भी उसके जिगर को हिला कर रखता है।
उम्मीद ना धूप आने की है,
ना गुज़री हुई बारिश की।
रात के अंधेरे मैं अब या डराता है,
या शायद ख़ुद से ही डर जाता है।
---इशा---
कहता है मैं तेरा कभी था ही नहीं।
जो रंग उड़ा उस पेड़ का,
जैसे कभी पानी मिला ही नहीं।
अब कौनसी हवा में खनक बजेगी,
कौन सा घोंसला बनेगा अभी।
अब घबराया वोह पेड़
टहनियों में ख़ुद को छुपाने की कोशिश करता है,
तेज़ झोंका भी उसके जिगर को हिला कर रखता है।
उम्मीद ना धूप आने की है,
ना गुज़री हुई बारिश की।
रात के अंधेरे मैं अब या डराता है,
या शायद ख़ुद से ही डर जाता है।
---इशा---