यह किताब अभी भी बाक़ी है,
कुछ पन्ने अभी भी ख़ाली है,
लिखना तो बहुत कुछ था अभी
पर कलम की सिहायी कुछ ख़ाली है ।
सोंचा कुछ माँग लूँ तुमसे,
या साथ बैठ के कुछ लफ़्ज़ों को भरू,
तुम्हें डूँडने निकली
तो पन्ने उड़ गए,
ख़याल तुम्हें जो सुनाने थे
वह भी गल गये।
नया सफ़ा, नया लफ़्ज़ कुछ है नहीं,
याद का बना हुआ अक्स ही अब काफ़ी है।