वक़्त ने उस मोड़ पे लाके खडा किया,
जहाँ मुझसे मेरा साया बिचाद गया.
ढूंढें किस रह पे, किन गलियों में,
खुद को जहाँ देखा, वहां तनहा पाया.
अँधेरी राह में जलता हुआ चिराग लिए,
थक गए फिर भी उसको न पाया.
चलते-चलते इक ऐसा कोचा आया,
सिसकियों से भरी तनहा गली में बिखरा पाया.
या खुदा, तुने भी क्या तकदीर बख्शी मुझको,
मैंने हर राह में खुद को तनहा पाया...
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