ऐ- बादल ले चल मुझे दरिया के पास
सूखा पड़ा, मिट्टी से लाथ-पथ
मुझे ही तो ढूँढ रहा है।
चल फिर से उसमें लहर भर दें।
चल उस ज़मीन के पास
झुर्रियों से लदी, बेजान सी
हर पल सदियों सी जीती हुई।
चल फिर उसे ज़रखैज़ कर दें।
चल चलतें है पत्तों के तरफ़
रंग उड़ा जा रहा है बे-ज़ुबानों का
हरे रंग की की ख़्वाहिश लिए,
चल गिरने से पहले उनमें रूह भर दें।
लो अब हवा साफ़ हुई
नमी से लद थी, अब हल्की दौड़ रही है।
यही हूँ मैं- ख़ुशी, खनक, रोमानवी।
----इशा---
सूखा पड़ा, मिट्टी से लाथ-पथ
मुझे ही तो ढूँढ रहा है।
चल फिर से उसमें लहर भर दें।
चल उस ज़मीन के पास
झुर्रियों से लदी, बेजान सी
हर पल सदियों सी जीती हुई।
चल फिर उसे ज़रखैज़ कर दें।
चल चलतें है पत्तों के तरफ़
रंग उड़ा जा रहा है बे-ज़ुबानों का
हरे रंग की की ख़्वाहिश लिए,
चल गिरने से पहले उनमें रूह भर दें।
लो अब हवा साफ़ हुई
नमी से लद थी, अब हल्की दौड़ रही है।
यही हूँ मैं- ख़ुशी, खनक, रोमानवी।
----इशा---
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