Nov 3, 2019

बहकता बादल

वो आया दूर से था,
मेरी तरफ़,
घना, भरा हुआ, प्यार से,
इस बार मुझपे बरसेगा, कुछ ऐसा लगा था।
तो इस बरस बारिश होगी,
हवाएँ भी तो अब रुख़ बदल रही थी।
मौसम हर सुर गा भी रही थी।
बरसने वो वाला था, आँखें मेरी गीली थी।
कई मौसम जो बीत चुके थे।
खिड़कियों की मुँडेरों पे भी हाथों के निशान छप गए थे।
उम्र की धूप और सूखी रेत से बालों का रंग ही बदल गया था।
लगा नहीं था वो कभी आएगा,
दरारों से भरी जमीं की कुछ प्यास मिटाने,
लगा नहीं था वो आएगा,
पीले पड़े रंग में रंग भरने।
पर इस बार कुछ ऐसा लगा था,
उसकी ख़ुशबू जो आयी थी।
चलो फिर कुछ उम्मीद तो जगी थी,
कि इस बार वो आएगा। 

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