Sep 20, 2016

यह ख़ामोशी, यह आवाज़

ख़ामोशी कभी सुनी है
घड़ी की टिक टिक,
पत्तों पे पड़े बारिश की आवाज़,
कहीं दूर कुछ कुत्तों के भोंकना,
पड़ोसी के घर में चलते टी॰वी॰ की आवाज़।
यह तो सब आवाज़ें है। ख़ामोशी नहीं।

तो सुनो ख़ामोशी की आवाज़...
पुरानी दबी यादों पे से धूल छटने की आवाज़,
उस पल में गुनगुनाए गाने की कानों में आवाज़,
दिल की हर धड़कन में दर्द की आवाज़,
उसकी भूली हुई साँसों को आपने कानों में सुन ने की आवाज़।

कितनी ही ऐसी आवाज़ों का मेला लगता है,
कितनी ही ऐसी आवाज़ों ka शोर मचता है,
कभी चुप चाप तकिए को भिगोता है,
तो कभी दिल ke कोने में दुबक sa जाता है।
Par रहती है कहीं आस-पास,
यह ख़ामोशी, यह आवाज़।


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