मत एहसास दिलाओ मेरा ख़ुद से मुहाजर होने का,
बड़ी मुद्दत के बाद मैंने एक घर बनाया है ।
----इशा---
पूरी ज़िंदगी में इंसान कितना समान इकट्ठा कर लेता है... फिर भी कम ही लगता है।
चलो आज कुछ नया सामान किसी जरूरतमंद को दें दें, पुरानी चीज़ों का लगाव को मरते नहीं जाता है।
----इशा----
दीवारें अपनी ना भी हो
पर कुछ वक़्त गुज़ार लो उनके साथ
तो छोड़ते वक़्त उनके लिए भी आखें गीली होती है।
कितनी रातों को अकेला माना होगा
पर दीवारों ने ही मुझे झेला था।
कभी रोके चिल्लाना, कभी डर के मुँह छुपाना।
हर दीवार के साथ मेरी एक कहानी।
बड़ी मुद्दत के बाद मैंने एक घर बनाया है ।
----इशा---
पूरी ज़िंदगी में इंसान कितना समान इकट्ठा कर लेता है... फिर भी कम ही लगता है।
चलो आज कुछ नया सामान किसी जरूरतमंद को दें दें, पुरानी चीज़ों का लगाव को मरते नहीं जाता है।
----इशा----
दीवारें अपनी ना भी हो
पर कुछ वक़्त गुज़ार लो उनके साथ
तो छोड़ते वक़्त उनके लिए भी आखें गीली होती है।
कितनी रातों को अकेला माना होगा
पर दीवारों ने ही मुझे झेला था।
कभी रोके चिल्लाना, कभी डर के मुँह छुपाना।
हर दीवार के साथ मेरी एक कहानी।
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