चुपचाप सा कोना पकड़ा मैंने अपना,
ठंडे फ़र्श पे जो सोया मेरा सपना,
लगा कि तकिया बनाके रखूँ अपने सीने को,
शायद सो पाए वोह आँखों में पर हो ना।
—इशा—
ठंडे फ़र्श पे जो सोया मेरा सपना,
लगा कि तकिया बनाके रखूँ अपने सीने को,
शायद सो पाए वोह आँखों में पर हो ना।
—इशा—
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