डल झील के सीने पे तैरती मेरी जाँ,
पिघलते चिनार के पत्तों में लिपटा मेरा अक़स,
ढलते सिरय में तेरी राह देख रहा है।
लोग कहते है कि खो गया है तू,
कहीं शायद तारों के पार, या कहीं शायद मिट्टी में।
पर ऐसा कैसे हो सकता है।
तेरी ख़ुशबू तो अभी भी मेरे हाथों पे है,
तेरे होंटों का एहसास अभी भी मेरे कानों पे है,
अभी भी दरवाज़ा खुला रखती हूँ,
तुझे देर से आने की आदत जो है।
अब रोशनी भी तो जल्दी जाती है,
और बर्फ़ की सफ़ेद सील्टे भी बड़ी हो रही है,
बेपरवाह मैं तुझे डूँड़े जा रही हूँ।
पर लोग कहते है नहीं आएगा तू।
पर ऐसा कैसे हो सकता है।
तूने ही तो कहा था जाँ हूँ मैं तेरी,
मौत से पहले तू अलग कहाँ हो पाएगा।
—-इशा—-
पिघलते चिनार के पत्तों में लिपटा मेरा अक़स,
ढलते सिरय में तेरी राह देख रहा है।
लोग कहते है कि खो गया है तू,
कहीं शायद तारों के पार, या कहीं शायद मिट्टी में।
पर ऐसा कैसे हो सकता है।
तेरी ख़ुशबू तो अभी भी मेरे हाथों पे है,
तेरे होंटों का एहसास अभी भी मेरे कानों पे है,
अभी भी दरवाज़ा खुला रखती हूँ,
तुझे देर से आने की आदत जो है।
अब रोशनी भी तो जल्दी जाती है,
और बर्फ़ की सफ़ेद सील्टे भी बड़ी हो रही है,
बेपरवाह मैं तुझे डूँड़े जा रही हूँ।
पर लोग कहते है नहीं आएगा तू।
पर ऐसा कैसे हो सकता है।
तूने ही तो कहा था जाँ हूँ मैं तेरी,
मौत से पहले तू अलग कहाँ हो पाएगा।
—-इशा—-