Feb 9, 2012

koi Intzaar sa tha...

खिड़की की मुंडेर पे बैठे और वोह इंतज़ार का आलम था 
सन्नाटों की चुबन में डूबा मेरे दिल का इक कोना था.
कुछ पल बूँदें बरस पडीं, आँखों का कुछ नगमा बना 
दूर चली उस सड़क पे जैसे कोई आने वाला था. 

ठण्ड हवा के झोंके ने कुछ पत्तों को यूँ हिला दिया
आहट उनकी थी पर रुकी धड़कन पे दिल मेरा था.

घडी की सूईयाँ भी खुद से दूर जा रही है, 
अब रात की तन्हाई मुझे और सहमा रही है
अरमानों की घट्हरी बनाके खुदको जब चलता बना
चुपके से लगा की कोई आपना साया सा गुज़रा था.     

   

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