Oct 6, 2016

मुहाजर

मत एहसास दिलाओ मेरा ख़ुद से मुहाजर होने का,
बड़ी मुद्दत के बाद मैंने एक घर बनाया है ।

----इशा---

दीवारें अपनी ना भी हो
पर कुछ वक़्त गुज़ार लो उनके साथ
तो छोड़ते वक़्त उनके लिए भी आखें गीली होती है।
कितनी रातों को अकेला माना होगा
पर दीवारों ने ही मुझे झेला था।
कभी रोके चिल्लाना, कभी डर के मुँह छुपाना।
हर दीवार के साथ मेरी एक कहानी।

----इशा----


पूरी ज़िंदगी में इंसान कितना समान इकट्ठा कर लेता है... फिर भी कम ही लगता है।
चलो आज कुछ नया सामान किसी जरूरतमंद को दें दें, पुरानी चीज़ों का लगाव को मरते नहीं जाता है।

मुहाजर

मत एहसास दिलाओ मेरा ख़ुद से मुहाजर होने का,
बड़ी मुद्दत के बाद मैंने एक घर बनाया है ।

----इशा---

पूरी ज़िंदगी में इंसान कितना समान इकट्ठा कर लेता है... फिर भी कम ही लगता है।
चलो आज कुछ नया सामान किसी जरूरतमंद को दें दें, पुरानी चीज़ों का लगाव को मरते नहीं जाता है।

----इशा----

दीवारें अपनी ना भी हो
पर कुछ वक़्त गुज़ार लो उनके साथ
तो छोड़ते वक़्त उनके लिए भी आखें गीली होती है।
कितनी रातों को अकेला माना होगा
पर दीवारों ने ही मुझे झेला था।
कभी रोके चिल्लाना, कभी डर के मुँह छुपाना।
हर दीवार के साथ मेरी एक कहानी।

Sep 20, 2016

यह ख़ामोशी, यह आवाज़

ख़ामोशी कभी सुनी है
घड़ी की टिक टिक,
पत्तों पे पड़े बारिश की आवाज़,
कहीं दूर कुछ कुत्तों के भोंकना,
पड़ोसी के घर में चलते टी॰वी॰ की आवाज़।
यह तो सब आवाज़ें है। ख़ामोशी नहीं।

तो सुनो ख़ामोशी की आवाज़...
पुरानी दबी यादों पे से धूल छटने की आवाज़,
उस पल में गुनगुनाए गाने की कानों में आवाज़,
दिल की हर धड़कन में दर्द की आवाज़,
उसकी भूली हुई साँसों को आपने कानों में सुन ने की आवाज़।

कितनी ही ऐसी आवाज़ों का मेला लगता है,
कितनी ही ऐसी आवाज़ों ka शोर मचता है,
कभी चुप चाप तकिए को भिगोता है,
तो कभी दिल ke कोने में दुबक sa जाता है।
Par रहती है कहीं आस-पास,
यह ख़ामोशी, यह आवाज़।


Jul 3, 2016

बारिश ।

बारिश..कितने शायरों की inspiration बनी है
कभी गरम चाय का taste बनती
कभी Maggi का added मसाला बनती।

आसमान में काले बादलों से आती...बारिश
कभी प्यार में और थोड़ा love मिलाती
कभी टूटे दिल का healing power बनती।

समुन्दर की लहरों में उफान भरती...बारिश
कभी सूखे खेतों में life बनती
कभी आंटी के गमलों को green करती।

बारिश...balcony में बैठके उसकी बूँदों को गिन रही हूँ,
कभी पत्तों से फिसलती
कभी काँच पे नाचती
कभी कबूतर के पंखों में फड़फड़ाती
कभी कोने में पड़ी cycle के carrier में जमती....बारिश ।।।

-----इशा----

Jun 25, 2016

रोमानवी बारिश ।

ऐ- बादल ले चल मुझे दरिया के पास
सूखा पड़ा, मिट्टी से लाथ-पथ
मुझे ही तो ढूँढ रहा है।
चल फिर से उसमें लहर भर दें।

चल उस ज़मीन के पास
झुर्रियों से लदी, बेजान सी
हर पल सदियों सी जीती हुई।
चल फिर उसे ज़रखैज़ कर दें।

चल चलतें है पत्तों के तरफ़
रंग उड़ा जा रहा है बे-ज़ुबानों का
हरे रंग की की ख़्वाहिश लिए,
चल गिरने से पहले उनमें रूह भर दें।

लो अब हवा साफ़ हुई
नमी से लद थी, अब हल्की दौड़ रही है।
यही हूँ मैं- ख़ुशी, खनक, रोमानवी।

----इशा---