Jan 31, 2017

सहलाब

यह बंद रौशनदानों के पीछे पानी की लकीरौं को देखो,
किसे पता है कि बाहर सहलाब अाया है।

....ईशा...

ख़ामोशी

ख़ामोशी कभी सुनी है
घड़ी की टिक टिक,
पत्तों पे पड़े बारिश की आवाज़,
कहीं दूर कुछ कुत्तों के भोंकना,
पड़ोसी के घर में चलते टी॰वी॰ की आवाज़।
यह तो सब आवाज़ें है। ख़ामोशी नहीं।

तो सुनो ख़ामोशी की आवाज़...
पुरानी दबी यादों पे से धूल छटने की आवाज़,
उस पल में गुनगुनाए गाने की कानों में आवाज़,
दिल की हर धड़कन में दर्द की आवाज़,
उसकी भूली हुई साँसों को आपने कानों में सुन ने की आवाज़।

कितनी ही ऐसी आवाज़ों का मेला लगता है,
कितनी ही ऐसी आवाज़ों ka शोर मचता है,
कभी चुप चाप तकिए को भिगोता है,
तो कभी दिल ke कोने में दुबक sa जाता है।
Par रहती है कहीं आस-पास,
यह ख़ामोशी, यह आवाज़।

-----इशा----

मूवर & पैकर

दीवारें अपनी ना भी हो
पर कुछ वक़्त गुज़ार लो उनके साथ
तो छोड़ते वक़्त उनके लिए भी आखें गीली होती है।
कितनी रातों को अकेला माना होगा
पर दीवारों ने ही मुझे झेला था।
कभी रोके चिल्लाना, कभी डर के मुँह छुपाना।
हर दीवार के साथ मेरी एक कहानी।

---इशा---

गुज़री यादें

मद्धम रौशनी मद्धम हम,
मद्धम पलों में ठहरें हम,
कुछ गुज़री यादों का, कुछ गुज़री बातों का,
चाँद बनाने चलें हैं हम।

उस चाँद के नीचे गुज़रा ज़माना,
फिर से चलें हैं जीने हम।
छुपती छुपाती यादों का,
बारिश में भीगी बातों का,
कुछ गुज़री यादों का, कुछ गुज़री बातों का,
आइना बनाने चले है हम।

-----इशा----

दर्द की रोशनी

सपनों की आहट तो तब सुनायी देगी,
जब आखों में नींद के पर्दे होंगे ।
यहाँ तो कोई दर्द की रोशनी
काली सी रात को भी भर देगी ।

---इशा---

रंग

काला रंग भी कितना अपना है
हर रंग को ख़ुदमे समा लेता है।
अब सफ़ेद रंग तो देख लो
कोई रंग जुड़े तो दाग़ कहलाता है।

---इशा----

ग़ालिब १

ऐ ग़ालिब तेरे रास्ते पे अब मैं नहीं खड़ी हूँगी,
कहीं तेरी शायरी बुरा ना मान जाए ।

----इशा---

गिरता hua आँसु

इस अहसास का ज़िक्र जब भी किया उससे,
अल्फ़ाज़ों के बिस्तर में चेहरा छुपा लिया,
वहीं नर्म तकिए पर गिरता मेरा आँसूँ,
नीम-बे-होशि में उसने अपनी आँखों में लिया।

---इशा---

महंगा एहसास

बंद रोशनदान, बंद दरवाज़े अब,
बंद हर एहसास का कारख़ाना।
ग़ैर-ज़रूरी अब रही,
इस महँगी चीज़ का कौन देगा मेहनताना।

----इशा---

So I found U

I was walking thru the woods, in the search of peace..
some greenery and some heights.
I was breathless in the walls, and the backseat of my car...
Some noise and some lights.
And I met u under shadowy trees,
Looking sad like a hat with sallow eyes..
You hv lost ur drums..the music in lives
And I cudnt see tears in ur eyes.
So we hold the hands in search of bright..
The drums n the wines in the woods alright...
We catch some fish n bonnfire,
Cudnt believe in the woods in night..
I can see u thru luv of mine..
We can see the music n shine...
I can see u thru luv of mine!

Isha

ग़ालिब

तेरी हर शायरी पे तालियाँ गूँजी ग़ालिब,
मेरे हिस्से के क़लम ने आँसू बहा दिया।

---इशा---

भूली भटकी नींद

इधर धर भटकती रात नींद को ढूँढती है,
तकिए के नीचे नहीं मिली तो पुराने संदूक खोजती है।
कभी बचपन की ख़ुशबू टटोलती हुई,
कभी बंद दराज़ में पड़ी किताब से लिपटी,
कभी अल्मारी के कोने में छुपी दूपट्टे में दस्ती हुई,
नींद को ढूँढती है।

---इशा----

कुछ अनकही

ज़िन्दगी सुन तू यही पर रुकना...
हम हालात बदल के आते है...!!!
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ज़रा थोड़ा जल्दी करना
कहीं मेरे हिस्से का ख़त्म ना हो जाए।

---इशा---

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ऐ-ज़िंदगी कुछ वक़्फ़ा दे मेरे वक़्त को,
तेरे ही पन्नों को चश्मा लगाके पड़ना है।

---इशा---

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काश नंगे पैर तेरी रेत पे चल सकूँ,
हवेली के झरोखों से रंगीन दुपट्टों को उड़ता देख सकूँ,
गली के कोने पे मंदिर की घंटियों का शोर,
उस सजी महफ़िल में ढोल और संगीत सुन सकूँ।

----इशा-----

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मैं आइना हूँ तेरा,मेरी ख़ामोशी को पड़ तो ज़रा,
अपनी सीरत का हर पन्ना देख पाएगा ।

---इशा/--

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ख़्वाहिशें तो पन्नों पे रह गयी,
वरना सूर्ख़्वाब के पर तो हम ने भी सजाए थे।

---इशा---

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