Jan 31, 2017

कुछ अनकही

ज़िन्दगी सुन तू यही पर रुकना...
हम हालात बदल के आते है...!!!
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ज़रा थोड़ा जल्दी करना
कहीं मेरे हिस्से का ख़त्म ना हो जाए।

---इशा---

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ऐ-ज़िंदगी कुछ वक़्फ़ा दे मेरे वक़्त को,
तेरे ही पन्नों को चश्मा लगाके पड़ना है।

---इशा---

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काश नंगे पैर तेरी रेत पे चल सकूँ,
हवेली के झरोखों से रंगीन दुपट्टों को उड़ता देख सकूँ,
गली के कोने पे मंदिर की घंटियों का शोर,
उस सजी महफ़िल में ढोल और संगीत सुन सकूँ।

----इशा-----

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मैं आइना हूँ तेरा,मेरी ख़ामोशी को पड़ तो ज़रा,
अपनी सीरत का हर पन्ना देख पाएगा ।

---इशा/--

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ख़्वाहिशें तो पन्नों पे रह गयी,
वरना सूर्ख़्वाब के पर तो हम ने भी सजाए थे।

---इशा---

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