Jan 31, 2017

भूली भटकी नींद

इधर धर भटकती रात नींद को ढूँढती है,
तकिए के नीचे नहीं मिली तो पुराने संदूक खोजती है।
कभी बचपन की ख़ुशबू टटोलती हुई,
कभी बंद दराज़ में पड़ी किताब से लिपटी,
कभी अल्मारी के कोने में छुपी दूपट्टे में दस्ती हुई,
नींद को ढूँढती है।

---इशा----

No comments:

Post a Comment