रिश्तों की इमारत बनाना कोई आसन खेल नहीं,
इसे खड़ा करने के लिए बुनियाद चाहिए विशवास की.
ऐतबार...छोटा सा है लफ्ज़,
पर इसी लफ्ज़ ने बांधें दिलों के तार है.
किसी से हाथ मिलाना तो आसान है,
पर उस हाथ को थामे रखना कोई छोटी बात नहीं.
ऐ-दोस्त ऐतबार है तेरी हर बात पर,
तेरे हर कदम पर,
अगर होता न यह विश्वास,
तो शायद मेरे कदम न चल पते तुम्हारे संग,
न रोतीं मेरी आँखें तेरे दर्द-ओ-गम पर.
पर आज तेरी हर याद ने दर्ग उठाया है दिल में,
वोह ऐतबार टूटकर चुभ गया है मुझसे.
कोई शिकायत तो नहीं तुझसे,
पर तेरी हर बात पर दिल बात नहीं करता मुझसे.
तुझसे कोई शिकवा-शिकायत तो नहीं,
पर अब शायद...
शायद इस दिल को जोड़ पाना तुम्हारे बस की बात नहीं...
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