Apr 15, 2011

Kuch pal

कितने हसीन है यह पल...
           जो तुम्हारे संग गुज़रते है.
शायद उन पलों को उस वक़्त नहीं जान पाती हु मैं,
           पर अकेले में, 
अकेले में वही पल चेहरे पर कुछ मुस्कान लातें है.

मुद्दत के इंतज़ार के बाद,
         अकेलेपन में उन पों को ढूँढती हुई, 
उनके मिलने पर शायद उन लम्हों की कद्र नहीं रहती मुझे,
          रूठना-मानना, तू तू, मैं मैं...
इनमे ही पल कैसे चले जातें है.
           पर अकेले में...
अकेले में याद आता है कि हर पल कितना ख़ास है. 

शर्म आती है पर कैसे कहूँ...
          कैसे कहूँ कि शर्मिंदा हूँ अपने आप पर.
कैसे तुम चुनकर लेट हो वह अनमोल पल,
          और मैं तुम्हें रुलाती-सताती हु उन्हें तोड़ कर.

अब इंतज़ार है उन्हीं पलों का,
        और आँखें भुन रहीं है नए सपने,
मन तुम्हारे दिल को दर्द हुआ कुछ कम नहीं,
           पर उस दर्द में...
उस दर्द में मेरे प्यार कि मिठास है बढकर कहीं. 

बड़ी किस्मत है तुम मिले हो,
            कुछ इंतज़ार ही सही...
कुछ पल ही सही...

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