Apr 15, 2011

Toota hua Ghada

मेरी जिंदगी एक टूटा हुआ घड़ा है,
हाथ में लेके जीये जा रही हु,
यह उम्मीद लगाये की जुड़ जाएगी कहीं.

लेकिन क्या टूटा हुआ घड़ा जुड़ पाया है कभी,
क्या ठहरा है पानी उसमें या थोड़ी सी नमी. 
चुभतें हैं टुकड़े लेके हाथों में अगर उनको, 
टूटी हुई चीज़ों को फैंका जाता है कहीं.

फिर मैं जिंदगी क्यों जी रही हु,
क्यों उमीदों की डोर सजाये बैठी हूँ.
लेलो न इसे, दफ़न कर दो कहीं,
आँखें बंद हूँगी तो सपनों का दामन छूटेगा तो सही...

No comments:

Post a Comment